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क्या ऑक्सीटोसिन आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है?

  • Menwellnessclinic
  • Apr 6, 2023
  • 6 min read


प्यार के क्षणों में जिस अलौकिक और अनिर्वचनीय आनन्द की प्राप्ति का अनुभव मानसिक रूप से होता है वह शरीर के अन्दर ऑक्सीटोसिन हार्मोन के रिलीज होने की वजह से ही सम्भव होता है.


मानव जीवन में प्यार का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है क्योंकि यह एक ऐसी बेहतरीन अनुभूति है जिसकी वजह से माता-पिता का अपने पुत्र व पुत्री से, पुत्र-पुत्री का अपने माता-पिता से, प्रेमी का अपनी प्रेमिका से, पति का अपनी पत्नी से, भाई का अपनी बहन से, भाई का भाई से एक ऐसा गहरा नाता होता है जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता बल्कि सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है, उसका सिर्फ मानसिक रूप से अनुभव ही किया जा सकता है और इस अनुभव की प्रक्रिया में शरीर के अन्दर जो रसायनिक प्रतिक्रिया होती उसे ही ऑक्सीटोसिन कहते हैं जो एक विशेष प्रकार का हार्मोन होता है.


जब भी कोई किसी को प्यार से गले लगाता है, किसी के प्यार में पड़ता है या कोई विपरीत लिंगी प्राणी जब आपस में यौन-सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया में शामिल होता है और उन सुखद पलों में जिस अलौकिक और अनिर्वचनीय आनन्द की प्राप्ति का अनुभव होता है वह शरीर के अन्दर ऑक्सीटोसिन हार्मोन के रिलीज होने की वजह से ही सम्भव होता है. जिस किसी भी के भी स्पर्श करने से मन में प्यार की अनुभूति होती है वह शरीर में ऑक्सीटोसिन हार्मोन के रिलीज होने की वजह से ही सम्भव होता है.


चूंकि ऑक्सीटोसिन की वजह से मानसिक रूप से प्रेममय आनन्द की अनुभूति होती है, इन्हीं कारणों से ऑक्सीटोसिन को 'लव हार्मोन' की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है. किसी भी प्रकार का हार्मोन बहुत ही स्वाभाविक रूप से शरीर के अन्दर उत्पन्न होनेवाला एक विशेष प्रकार का रसायन होता है जो शरीर और मन के अन्दर जिस प्रकार की अनुभूति होती है उस अनुभूत संदेशों को एक नियत जगह पर भली-भांति पहुंचाने का काम करता है जिसकी वजह से मानसिक और शारीरिक विकास को एक सही और अनुकूल दिशा प्राप्त होती है.


आमतौर पर कोई भी इस बात को समझ ही नहीं पाता है कि आखिर वह कौन सी वजह है जिसके कारण किसी नवजात शिशु के प्रति मन में इतना अगाध प्रेम कैसे महसूस होने लगता है? दरअसल होता यह है कि शरीर के मस्तिष्क में जो हाइपोथैलेमस ग्लैंड मौजूद होता है उससे ऑक्सीटोसिन हार्मोन निर्मित होता है और मस्तिष्क में ही पॉस्टीरियर पिट्यूटरी ग्रंथि भी मौजूद होती है जो इस हार्मोन को रिलीज करने का काम करती है.


यहां ध्यान देने योग्य विशेष बात यह भी है कि यह ऑक्सीटोसिन हार्मोन स्त्री और पुरुष दोनों में ही समान रूप से निर्मित होता है और इतना ही नहीं यह ऑक्सीटोसिन हार्मोन शिशुओं में भी निर्मित होने के साथ ही रिलीज भी होता है क्योंकि नवजात शिशुओं को भी प्यार की बेहतरीन अनुभूति है परन्तु इस ऑक्सीटोसिन हार्मोन की भूमिका पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में कुछ अधिक ही महत्वपूर्ण होती है.


कोई जब मानसिक रूप से रोमांस करने की स्थिति में तैयार होता है अथवा यौन-सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया में शामिल होता है, जब कोई अपने मन में किसी भी कार्य के प्रति सकारात्मक सोंच का अनुभव कर रहा होता है, जब कोई महिला अपने शिशु को जन्म देती है या उसे स्तनपान करा रही होती है तो ऐसी स्थिति में उसके शरीर के अन्दर ऑक्सीटोसिन हार्मोन के उत्पन्न होने के साथ ही उसके रिलीज होने की स्थिति भी बहुत ही बेहतरीन होती है और जब तक ऐसी क्रियाएं हो रही होती हैं तो मस्तिष्क के अन्दर ऑक्सीटोसिन हार्मोन के उत्पादक और रिलीज करनेवाले तन्त्र यह सुनिश्चित करते हैं कि जब तक ऐसी क्रियाएं जारी रहती हैं तब तक ऑक्सीटोसिन हार्मोन सही तरीके से रिलीज होता रहे.


पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में प्रगाढ़ता स्थापित करने, माता-पिता से उनके बच्चों में आत्मीय सम्बन्ध को स्थापित करने, आपसी रिश्तों में प्रेम और विश्वास को बढ़ावा देने के साथ ही प्राकृतिक तरीके से प्रसव-क्रिया सम्पन्न करने में ऑक्सीटोसिन हार्मोन की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसका मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत ही अनुकूल प्रभाव पड़ता है. यहां ध्यान देने योग्य विशेष बात यह भी है कि ऑक्सीटोसिन हार्मोन महिलाओ के गर्भाशय, स्तन, प्रजनन अंगों के साथ ही उनकी मनःस्थितियों पर भी अपना बहुत ही अनुकूल प्रभाव डालता है जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य बहुत ही बेहतरीन स्थिति में रहता है.


महिलाओं के जीवन में कभी-कभार ऐसी भी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं जब उनके शरीर में ऑक्सीटोसिन हार्मोन की आपूर्ति बाह्य तरीके से करने की आवश्यकता हो जाती है. दरअसल होता यह है कि जब गर्भवती महिलाएं गर्भस्थ शिशु को जन्म देने की स्थिति में होती हैं तो उनमें दर्द को प्रेरित करने अथवा उन्हें सहायता प्रदान करने के लिए डॉक्टर ऑक्सीटोसिन फॉर्मूलेशन का इस्तेमाल करते हैं जो उनकी नसों या मांसपेशियों में उन्हें इंट्रानेजल स्प्रे के माध्यम से प्रेषित की जाती है ताकि उनकी प्रसव वेदना में कमी आ सके और वह सुखानुभूति का अनुभव करते हुए अपने शिशु को बड़े आराम से जन्म दे पाने में सफल हो सकें.


हालांकि, कभी-कभार कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ महिलाओं में इसके दुष्प्रभाव की सम्भावना भी उत्पन्न हो सकती है और उनमें उच्च रक्तचाप अथवा निम्न रक्तचाप की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, उनके हृदय की धड़कनें तेज या धीमी हो सकती हैं, उनके शरीर में पानी और सोडियम भी जमा हो सकता है, उनके गर्भाशय में संकुचन हो सकता है, उनके गर्भाशय के फटने की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है तथा इसके साथ ही उन्हें अपने शिशु के जन्म के समय में सांस लेने में भी किसी प्रकार के अवरोध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है परन्तु ऐसी स्थिति कुछ विशेष परिस्थितियों में ही उत्पन्न हो सकती हैं, सामान्य परिस्थितियों में ऐसी संभावनाओं के उत्पन्न होने की स्थिति प्रायः नहीं ही हुआ करती हैं.


यहां ध्यान देने योग्य विशेष बात यह भी है कि ऑक्सीटोसिन हार्मोन मन में पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों के साथ ही किसी भी अन्य प्रकार के सम्बन्धों को भी बेहतर बनाने की क्षमता को बहुत ही अनुकूल ढंग से बढ़ाने का कार्य करता है. माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति और बच्चों का अपने माता-पिता प्रति जो स्वाभाविक रूप से भावनात्मक सम्बन्ध आजीवन कायम रहता है उसमें ऑक्सीटोसिन हार्मोन की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है. जो लोग किसी भी कारणवश बहुत ही मानसिक तनाव से ग्रसित रहा करते हैं उनके लिए भी तनाव से मुक्ति हेतु यह ऑक्सीटोसिन हार्मोन बहुत ही कारगर और मददगार साबित होता है.


जो लोग शराब, ड्रग्स, धूम्रपान के साथ ही विभिन्न प्रकार की प्रतिबंधित दवाओं का सेवन करने के आदी होते हैं वह अगर चाहें तो अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ ही ऑक्सीटोसिन हार्मोन के सहारे अपनी इन बुरी आदतों से पूरी तरह निजात पाने में कामयाब हो सकते हैं. ऑक्सीटोसिन हार्मोन लोगों में डिप्रेशन की समस्या को दूर करने में भी काफी हद तक सहायक होता है. ऑक्सीटोसिन हार्मोन स्त्री और पुरुष के बीच रोमांस पैदा करने के साथ ही यौन-सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया में शामिल होने की स्थिति में भी अपनी बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है. ऑक्सीटोसिन हार्मोन के माध्यम से आपसी रिश्तों को बहुत ही बेहतरीन तरीके से मजबूत बनाने में भी काफी मदद मिलती है. किसी भी अन्य कारणों की वजह से अगर शरीर में ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन की कमी हो जाती है तो बाह्य तरीके से भी इस कमी को बड़ी आसानी के साथ पूरा किया जा सकता है.


यहां विशेष रूप से कुछ अत्यन्त ही महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना भी नितान्त रूप से आवश्यक हो जाता है कि जिस प्रकार एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं और उन दोनों पहलुओं में किसी भी प्रकार की कोई समानता नहीं होती है ठीक उसी प्रकार यह ऑक्सीटोसिन हार्मोन जहां एक ओर तो बहुत ही फायदेमंद होता है तो वहीं दूसरी ओर इसके कुछ दुष्प्रभाव भी होते हैं जिनके बारे में भी अच्छी तरह जान-बूझ लेना आवश्यक हो जाता है. ऑक्सीटोसिन हार्मोन के दुष्प्रभाव सामान्यतया इसको बाह्य तरीके से प्राप्त करने की खुराक की वजह से ही होते हैं. इससे होनेवाले दुष्प्रभाव प्रायः निम्न प्रकार के होते हैं:-


इसके दुष्प्रभाव की वजह से हृदय से सम्बन्धित समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, सिर में दर्द की समस्या हो सकती है, दिल की धड़कनें तेज या धीमी हो सकती हैं, उच्च रक्तचाप अथवा निम्न रक्तचाप की समस्याएं भी हो सकती हैं, उल्टी होने की स्थिति आ सकती है, इसके अनुचित खुराक की वजह से मूत्र-निस्सरण में कमी हो सकती है, यदि गर्भाशय के संकुचन में तीव्रता और आवृत्ति के साथ ही एक निश्चित अवधि में होनेवाली वृद्धि अगर किसी कारणवश अनियंत्रित हो जाती है तो इससे गर्भाशय के फटने की आशंका भी बढ़ जाती है.


प्रसव काल में वेदना की स्थिति में बाह्य तरीके से दी जानेवाली ऑक्सीटोसिन हार्मोन की अनुचित खुराक की वजह से नवजात शिशुओं पर भी इसका बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है तथा इसके साथ ही इसके दुष्प्रभाव की वजह से नवजात शिशुओं में पीलिया रोग से ग्रसित होने की संभावनाएं भी हो सकती हैं. अगर किसी कारणवश गर्भाशय का संकुचन अत्यधिक बढ़ जाता है तो ऐसी स्थिति में गर्भस्थ शिशु को सांस लेने में कठिनाई भी उत्पन्न हो सकती है और इसके साथ ही अगर गर्भाशय का संकुचन एक लम्बी अवधि तक बना रहता है तो गर्भस्थ शिशु की गर्भ में ही मृत्यु भी हो सकती है.






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